Repo Rate: भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) का एक महत्वपूर्ण मौद्रिक नीति उपकरण है, जो अर्थव्यवस्था में तरलता और ब्याज दरों को नियंत्रित करता है। यह दर वाणिज्यिक बैंकों को अल्पकालिक धन उधार देने की लागत को दर्शाती है। आइए, इसे विस्तार से समझें कि रेपो रेट क्या है, यह कैसे काम करता है, इसके फायदे क्या हैं,

भारत में भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) अर्थव्यवस्था में धन की आपूर्ति को कम या अधिक करने के लिए रेपो और रिवर्स रेपो को काम में लेता है। आरबीआई वाण्यिजिक बैंकों को जब उधार देता है तो उसे रेपो दर (repo rate) कहा जाता है। मुद्रास्फीति के समय, आरबीआई रेपो दर को बढ़ा देता है जिससे बैंकों द्वारा धन उधार लेने और अर्थव्यवस्था में धन की आपूर्ति कम होने को हतोत्साहित किया जाता है।[1] October 2019 के अनुसार आरबीआई रेपो दर 5.15% कर दिया है
Repo Rate क्या है समझे ?
रेपो रेट वह ब्याज दर है जिस पर RBI वाणिज्यिक बैंकों को सरकारी प्रतिभूतियों (government securities) के पुनर्खरीद समझौते (repurchase agreement) के आधार पर अल्पकालिक धन उधार देता है। इसे “रेपो” (Repurchase) कहा जाता है, क्योंकि बैंक उधार लिए गए धन के बदले प्रतिभूतियाँ जमा करते हैं और तय समय बाद इन्हें वापस खरीदते हैं।
- आधार: यह दर Net Demand and Time Liabilities (NDTL) के 1% तक धन उधार लेने की सीमा तय करती है।
- अवधि: आमतौर पर ओवर-नाईट से लेकर 28 दिन तक, हालांकि LTRO (Long Term Repo Operations) में यह लंबी हो सकती है।
रेपो रेट मौद्रिक नीति का एक प्रमुख हिस्सा है, जो अर्थव्यवस्था में धन की आपूर्ति को संतुलित करता है।
रेपो रेट के फायदे क्या हैं?
वैसे तो रेपो रेट के कई फायदे हैं, जो अर्थव्यवस्था और बैंकों दोनों के लिए उपयोगी हैंजो की हम नीचे कुछ उदाहरण दे रहे है आप देख सकते है :
- तरलता प्रबंधन: बैंकों को अल्पकालिक नकदी उपलब्ध कराकर वित्तीय स्थिरता बनाए रखता है।
- मुद्रास्फीति नियंत्रण: रेपो दर बढ़ाने से बाजार में धन की आपूर्ति कम होती है, जिससे महंगाई पर लगाम लगती है।
- आर्थिक विकास: निम्न रेपो दर से बैंकों का उधार सस्ता होता है, जिससे लोन सस्ते मिलते हैं और व्यवसाय बढ़ते हैं।
- विश्वास बढ़ाना: यह बैंकों और निवेशकों में विश्वास बनाए रखता है, क्योंकि RBI तरलता सुनिश्चित करता है।
- लचीलापन: RBI बाजार की स्थिति के अनुसार दरों में बदलाव कर सकता हैसमय -समय पे ।
रेपो रेट कैसे काम करता है जाने ?
रेपो रेट का कामकाज एक साधारण प्रक्रिया पर आधारित है: आधिकारिक वेबसाइट :- http://www.rbi.org.in/
- उधार प्रक्रिया: जब बैंकों के पास नकदी की कमी होती है, वे RBI से धन उधार लेते हैं और इसके बदले सरकारी प्रतिभूतियाँ जमा करते हैं।
- पुनर्खरीद: तय समय (जैसे 7 दिन या 28 दिन) के बाद बैंक इन्हें अधिक मूल्य पर वापस खरीदते हैं, और अंतराल ब्याज के रूप में काम करता है।
- तरलता नियंत्रण: अगर RBI रेपो रेट बढ़ाता है, तो उधार लेना महंगा हो जाता है, जिससे बाजार में नकदी कम होती है। अगर दर घटाई जाती है, तो उधार सस्ता हो जाता है और नकदी बढ़ती है।
- मुद्रास्फीति प्रभाव: उच्च रेपो दर मुद्रास्फीति (inflation) को नियंत्रित करती है, जबकि निम्न दर आर्थिक विकास को बढ़ावा देती है।
समझे उदाहरण के लिए, अगर रेपो रेट 5% है और बैंक 100 करोड़ उधार लेते हैं, तो 7 दिन बाद वे 100.24 करोड़ (ब्याज सहित) वापस करते हैं।
रेपो रेट का आज का स्टेटस क्या है ( अप्रैल 2025)
हम बात कर रहे है अप्रैल 2025 तक, रेपो रेट की सटीक दर RBI की नवीनतम मौद्रिक नीति पर निर्भर करेगी। पिछले रुझानों के आधार पर, अगर मुद्रास्फीति 5-6% के बीच है, तो रेपो दर 6% के आसपास हो सकती है। वैश्विक तेल कीमतों और अमेरिकी Fed की नीतियों का भी असर पड़ता है। RBI की अगली घोषणा से पहले, बाजार विश्लेषक 0.25% की बढ़ोतरी की संभावना जता रहे हैंबाक़ी की खबरे हम आप को समय समय पे देते रहते है ।
रेपो रेट की शुरुआत कब और कैसे
रेपो रेट की अवधारणा भारत में 1980 के दशक में शुरू हुई, लेकिन इसे औपचारिक रूप से मौद्रिक नीति का हिस्सा 1990 के दशक में बनाया गया। इसके विकास के चरण इस प्रकार हैं:
- 1990 का दशक: रेपो रेट की शुरुआत Liquidity Adjustment Facility(LAF) के साथ हुई, जो 2000 में शुरू हुई। शुरुआती दरें 6-7% के आसपास थीं।
- 2008-09 (वैश्विक मंदी): रेपो रेट 3% तक नीचे लाई गई ताकि अर्थव्यवस्था को प्रोत्साहन मिले।
- 2010-2014: मुद्रास्फीति बढ़ने पर रेपो रेट 8-9% तक पहुंची, लेकिन बाद में इसे कम किया गया।
- 2019: अक्टूबर में रेपो रेट 5.15% और रिवर्स रेपो रेट 4.90% पर स्थिर की गई।
- 2020-2022 (कोविड प्रभाव): रेपो रेट 4% तक नीचे लाई गई ताकि अर्थव्यवस्था को सहारा मिले।
- 2023-2025: मुद्रास्फीति और वैश्विक स्थिति के आधार पर दरें 6% के आसपास रहीं। 9 अप्रैल 2025 तक, नवीनतम दर अप्रैल 2025 की मौद्रिक नीति समीक्षा पर निर्भर करेगी।
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रेपो रेट से जुड़े तथ्य और सावधानियाँ
- संबंध: रेपो रेट का सीधा असर EMI, लोन, और FD ब्याज दरों पर पड़ता है।
- रिवर्स रेपो रेट: यह रेपो रेट से 0.25-0.50% कम होती है और अतिरिक्त नकदी को अवशोषित करती है।
- सावधानी: उच्च रेपो दर से आर्थिक गतिविधियाँ धीमी हो सकती हैं, जबकि निम्न दर से मुद्रास्फीति बढ़ सकती है।
- डेटा स्रोत: “Definition of ‘Repo Rate'” (The Economic Times, 13 जून 2019)।
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